टिटेनस क्या है ?
टिटेनस शारीरिक पेशियों की रुक रुक ऐंठने की एक अवस्था है । यह अवस्था किसी गहरी मार या चुभन के संक्रमम के बाद शुरू होती है और घाव के पास सारे शरीर में फैल जाती है और इसके परिणाम स्वरूप मृत्यु हो जाती है । इस रोग का महत्वपूर्ण तथ्य है कि इस घातक रोग का सरलता पूर्वक निवारण मार लगने के बाद सम्यक तौर पर टीकाकरण से हो जाता है ।
यह कैसे होता है ?
यह इन्फेक्शन टिटेनोस्पासमिन से होता है । यह एक जानलेवा न्यरोटॉक्सिन है जो क्लोस्ट्रिडियम टेटेनाई नामक बैक्टिरिया से निकलता है । ये बैक्टिरिया धूल, मिट्टी, लौह चूर्ण कीचड़ आदि में होते हैं । इनसे गहरी चोट या जख्म दूषित हो जाते हैं । जैसे जैसे बीमारी बढ़ती है, पहले जबड़े की पेशियों में ऐंठन आती है । इसे लॉक जॉ कहते हैं । इसके बाद निगलने में कठिनाई होने लगती है और फिर सारे शरीर की पेशियों में जकड़न और ऐंठन होना शुरू होता है ।
यह रोग उन लोगों में होता है जो टीका नहीं लेते अथवा अपर्याप्त टीकाकरण करवाते हैं । टिटेनस सारे विश्व में होता है, किन्तु गर्म प्रदेश, नमी के वातावरण में जहॉं मिट्टी में खाद अधिक हो उनमें अधिक होता है । इसका कारण जिस मिट्टी में खाद डाली जाती है उसमें घोडे, भेड़, बकरी, कुत्ते, चूहे, सूअर, चूजों आदि मानवेतर पशुओं का पुरीष का उपयोग होता है और इन पशुओं के आंतों और पुरीष में बैक्टिरिया के स्पोर बहुतायत में होते हैं । खेतों में काम करनेवालों में भी ये बैक्टिरिया होते हैं ।
टीकाकरण से निवारण योग्य एकमात्र रोग टिटेनस हैं । यह इन्फेक्शन से होता है, किन्तु संक्रामक रोग नहीं है । इस रोग से संक्रमित रोगी से दूसरे में संक्रमण नहीं फैला सकता ।
इसके प्रमुख कारण
स्थानीय टिटेनस : यह इतना साधारण प्रकार नहीं है । इसमें चोट की जगह पर रोगी को निरंतर ऐंठन होती है । ऐंठन शान्त होने में कुछ हफ्ते लग पाते हैं । स्थानीय टिटेनस प्रायः मन्द होता है, केवल 1% रोगियों में यह घातक हो सकता है । किन्तु इस रोग में बाद में सार्वदैहिक टिटेनस भी हो सकता है ।
कैफेलिक टिटेनस : यह एक दुर्लभ प्रकार है । यह प्रायः ओटाइटिस मिडिया (कान का इन्फेक्शन) के साथ होता है, जिसमें कान के फ्लोरा में सी. टिटेनाई मध्यकर्ण में उपस्थि रहते हैं अथवा यह सिर की मार के बाद होता है । इसमें विशेषकर मुँह के भाग में क्रेनियल नर्व प्रभावित होती है ।
सार्वदैहिक टिटेनस - यह अधिकतर पाया जाने वाले टिटेनस है, जो कि 80% रोगियों में पाया जाता है । इसका सार्वदैहिक प्रभाव सिर से आरंभ होकर निचले शरीर में आता है । पहला लक्षण ट्रिसमस या जबड़े बन्द होना (लॉक जॉ) होता है । मुँह की पेशियों में जकड़न होती है, जिसे रिसस सोर्डोनिकस कहते हैं । इसके बाद गर्दन में ऐंठन, निगलने में तकलीफ, छाती और पिंडली की पेशियों में जकड़न होती है । अन्य लक्षण होते हैं - बुखार, पसीना, ब्लडप्रेशर बढ़ना और ऐंठन आने पर हृदय गति बढ़ना । शरीर में ऐंठन के झटके बार बार आते हैं और कई मिनटों तक रहते हैं । दौरे आने पर शरीर विचित्र प्रकार से मुड़ता है । इसे ओपिस्थोटोनस (धनुषाकार) कहा जाता है । ये दौरे 3-4 हफ्ते तक आते रहते हैं और पूरी तरह से ठीक होने में महीने लग जाते हैं ।
शिशुओं का टिटेनस : यह एक सार्वदैहिक टिटेनस जैसे नवजात शिशुओं में होता है । यह उन नवजातों में होता है जिन्हें गर्भस्थ रहने पर मॉं द्वारा पैसिव इम्युनिटी नहीं मिलती, जब कि प्रसूता मॉं का टीकाकरण बराबर नहीं होता । यह प्रायः नाभि का घाव बराबर न सूखने के कारण होता है, विशेषतः नाभि काटने में बिना स्टेराइल उपकरणों का उपयोग करने पर नवजात शिशु में यह हो सकता है । कई विकासशील देशों में नवजातों का टिटेनस होना आम है । इस कारण लगभग 14% नवजातों की मृत्यु होती है । किन्तु विकसीत देशों में यह दुर्लभ होता है ।
मन्द टिटेनस की चिकित्सा ऐसे की जाती है -
* टिटेनस इम्यून ग्लोबलिना का अन्तःशिरा या अन्तःपेशिय उपयोग
* 10 दिन मेट्रोनिडॉजोल का अन्तशिरा उपयोग
* डायजेपाम
* टिटेनस का टीकाकरण
गंभीर रोग को सघन चिकित्सा के लिए भरती करवाया जाता है । यह उपरोक्त मंद टिटेनस के उपायों के अतिरिक्त होते हैं ।
* ह्यूमन टिटनेस इम्यूनोग्लाबलिन, इन्ट्रीथिकल दिये जाते हैं । (इससे 4% से 35% लाक्षणिक लाभ होता है ।)
* मैकेनिकल वायु संचार के लिए ट्रैकियोस्टोमी 3-4 हफ्तों के लिए दी जाती है ।
* पेशीय ऐंठन रोकने के लिए अन्तःशिरा द्वारा मैगनिशियम दिया जाता है ।
* डायेजापाम (जो वैलियम नाम से मिलता है) लगातार अन्तःशिरा द्वारा दिया जाता है ।
* टिटनस का ऑटोनामिक प्रभाव की व्यवस्था करना मुश्किल होता है । (कभी ब्लड प्रेशर बढ़ना, कभी कम होना, कभी शरीर का तापमान बढ़ना, कभी कम हो जाना) इसके लिए अंतःशिरा द्वारा लैबिटॉलॉल, मैगनिशियम, क्लोनिडिन या निफेडेविन की जरूरत होती है ।
डायजापाम और अन्य पेशीय रिलेक्सेंट पेशियों की ऐंठन कम करने के लिए दिये जाते हैं । अत्यन्त गंभीर रोगी में पक्षाघात कारक औषधी - क्यूरारे जैसी औषधी का उपयोग भी करना पड़ता है और रोगी को मैकानिकल वैंटीलेटर पर रखा जाता है । टिटेनस से जान बचाने के लिए यह एक कृत्रिम श्वासपथ (एयर वे) और सम्यक पोषण आहार देना आवश्यक होता है । 3500-4000 कैलोरी और कम से कम 150 ग्राम प्रोटीन प्रतिदिन द्रव के रूप में ट्यूब द्वारा आमाशय तक पहुँचाया जाता है ।
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tetanus _wikipedia, the free encyclopedia
tetanus toxoid vaccine, serum institute of india ltd.
tetanus_symtoms, treatment and prventation
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